Saturday, May 16, 2009

वापसी-1



पत्नी के त्रिया हठ के आगे मेरी एक न चली। अपने खोये हुए सोने के झुमके के बारे पूछने के लिए, उसने मुझे ‘डेरे वाले बाबा’ के पास जाने को बाध्य कर दिया।
पत्नी का झुमका पिछले सप्ताह छोटे भाई की शादी के अवसर पर घर में ही कहीं खो गया था। बहुत तलाश करने पर भी वह नहीं मिला।
बाबा के डेरे जाते समय रास्ते में मेरी पत्नी बाबा जी की दिव्य-दृष्टि का बखान ही करती रही, “पड़ोस वाली पाशो का कंगन अपने मायके में खो गया था। बाबा जी ने झट बता दिया कि कंगन पाशो की भाभी के संदूक में पड़ा दीख रहा है। पाशो ने मायके जाकर भाभी का संदूक देखा तो कंगन वहीं से मिला। जानते हो पाशो का मायका बाबा जी के डेरे से दस मील दूर है।”
मैं कहना तो चाहता था कि ऐसी बातें बहुत बढ़ा-चढा कर की गईं होती हैं। परंतु मेरे कहने का पत्नी पर कोई प्रभाव नहीं पढने वाला था, इसलिए मैं चुप ही रहा।
पत्नी फिर बोली, “…और अपने गब्दू की लड़की रेशमा। ससुराल जाते समय रास्ते में उसकी सोने की अंगूठी खो गई। बाबा जी ने आँखें मूँद कर देखा और बोल दिया– ‘नहर के दूसरी ओर नीम के वृक्ष के नीचे घास में पड़ी है अंगूठी।’ और अंगूठी वहीं से मिली।”
गाँव के बाहर निकलने के पश्चात बाबा के डेरे पहुँचते अधिक देर नहीं लगी। बाबा अपने कमरे में ही थे। हमने कमरे में प्रवेश किया तो सब सामान उलट-पुलट हुआ पाया। बाबा और उनका एक शागिर्द कुछ ढूँढने में व्यस्त थे।
हमें देख कर बाबा के शागिर्द ने कहा, “बाबा जी थोड़ा परेशान हैं, आप लोग शाम को आना।”
मैने पूछ लिया, “क्या बात हो गई?”
“बाबा जी की सोने की चेन वाली घड़ी नहीं मिल रही। सुबह से उसे ही ढूँढ रहे हैं।” शागिर्द ने सहज भाव से उत्तर दिया।
वापसी बहुत सुखद रही। पत्नी सारे राह एक शब्द भी नहीं बोली।
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2 comments:

अखिलेश शुक्ल said...

प्रिय मित्र
आपकी रचना ने प्रभावित किया बधाई इन्हें प्रकाशित करने के लिए मेरे ब्लाग पर पधारें।
अखिलेश शुक्ल्
http://katha-chakra.blogspot.com

ਸ਼ਿਆਮ ਸੁੰਦਰ ਅਗਰਵਾਲ said...

यह एक श्रेष्ठ रचना है,बधाई!
नीतिका