Monday, April 5, 2010

एक वोट की मौत




नगरपालिका के लिए मतदान हो रहा था। धूप बहुत तेज थी। मतदान-केंद्र के बाहर मतदाताओं की लंबी कतार लगी थी। शोर मच रहा था। धक्कम-धक्का चल रहा था। दो-तीन लोग तो गरमी सहन न कर सकने के कारण बेहोश होकर गिर चुके थे। दो उम्मीदवारों के बीच बहुत सख्त मुकाबला था।

ऐसे में एक कार्यकर्ता कार से उतरा। वह लगभग भागता हुआ मतदान-केंद्र तक पहुँचा तथा अपने उम्मीदवार को केंद्र से बाहर बुला लिया।

अपने वार्ड में गरमी से एक साथ दो मौतें हो गई हैं!कार्यकर्ता ने अपने चेहरे से पसीना पोंछते हुए उम्मीदवार को सूचना दी।

कौन-कौन मर गया?उम्मीदवार ने कार्यकर्ता को एक तरफ एकांत में ले जाते हुए पूछा।

एक तो घीसा कुम्हार मर गया और दुसरी रामू धोबी की घरवाली सरबती।कार्यकर्ता ने बहुत ही धीमी आवाज में कहा।

उम्मीदवार ने हाथ में पकड़ी मतदाता-सूची को देखा और फिर कहा, घीसा कुम्हार मर गया तो कोई फर्क नहीं, पर यह रामू धोबी की घरवाली वाला काम खराब हो गया। घीसा तो अपना वोट डाल गया था, लेकिन सरबती का रह गया। इस साली ने भी आज ही मरना था, दो-चार घंटे और ठहर जाती…।

फिर कुछ सोचते हुए वह कार्यकर्ता को और दूर खींच कर ले गया और बोला, मुकाबला बहुत कड़ा है। एक-एक वोट का महत्व है। वह साली तो मर गई, हमें तो नहीं मरना। तुम जाओ और इसके पहले कि मौत की खबर यहाँ तक पहुँचे, अपनी घरवाली को घूँघट कढ़वा कर ले आओ। थोड़ी देर के लिए वह ही सरबती बन जायेगी। उसका डील-डौल सरबती-सा ही है।

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