मकान को देखकर किराएदार बहुत खुश हो रहा था। उसने कभी सोचा भी न था कि शहर में इतना बढ़िया मकान किराए के लिए खाली मिल जाएगा। सब कुछ बढ़िया था–बेडरूम, ड्राइँगरूम, किचन। कहीं भी कोई कमी नहीं थी।
“छत तो पक्की होगी?” उसने मकान-मालिक से प्रश्न किया।
“हाँ जी, बिलकुल पक्की! ऊपर पानी की टंकी भी है। आप जाकर देख आओ।”
किराएदार सीढ़ियाँ चढ़कर छत पर गया और कुछ देर बाद वापस आ गया। अब वह निराश था।
“अच्छा जी, आपको तकलीफ दी। मकान तो बहुत बढ़िया है, पर मैं यहाँ नहीं रह सकता।”
मकान-मालिक ने कहा, “आपको कोई वहम तो नहीं हो गया? मकान में भूत नहीं है और न ही कोई पुलिस-चौकी इसके आसपास है।”
किराएदार ने जब पीछे पलटकर नहीं देखा तो मकान-मालिक ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया, “मकान तो चाहे आप किराए पर न लो, लेकिन यह तो बता दो कि इसमें कमी क्या है? लोग तो कहते हैं कि शहर में मकानों का अकाल-सा पड़ गया है, पर यहाँ इतना बढ़िया मकान खाली पड़ा है।”
मकान-मालिक पूरे का पूरा प्रश्नचिन्ह बनकर किराएदार के सामने खड़ा था।
किराएदार ने मकान-मालिक से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा, “आपको पता नहीं है कि आपका मकान घर के योग्य नहीं है। इसके एक तरफ गुरुद्वारा है और दूसरी तरफ मंदिर।”
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3 comments:
फिर यह मकान तो और पवित्र हो गया .. इसमें गडबडी कैसी ?
baभुत सुन्दर लघु कथा शायद वो आज के धार्मिक उन्मांद से डर गया हो या नास्तिक हो।
क्षमा करें
। शायद दोनों ही पाठक इस लघुकथा के असली मर्म को नहीं पहचान पाए। आज की तारीख में ऐसे दो धार्मिक स्थलों के बीच रहना शायद ही कोई पसंद करेगा। भले ही वह कितना ही आस्तिक क्यों न हो।
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