Tuesday, July 27, 2010

माँ

 










जिस्म को अपने नोच कर
तुझे पिलाया जिसने दूध
उस माँ को तूने
चाय के लिए भी तरसाया।
आँचल की छाँव में तुझ अबोध को रखा
रक्षा-कवच उस माँ का
तू कभी बन नहीं पाया।
छोटे से अपने पेट में भी
रखा तुझे जिसने
उस माँ को
अपनी कोठी में भी
रख नहीं पाया।
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3 comments:

वाणी गीत said...

कविता के भाव अच्छे हैं मगर
किसी माँ के लिए "जिस्म को नोच कर" जैसा शब्द- प्रयोग उचित नहीं रहा ...

Shabad shabad said...

Bahut acchee kavita....
"Ma"....
Jab tak tu karta tha 'totally baaten"(not clear )
tab tak to Ma ko samaj lagtee theen
Ab jab tu saaf-saaf bolne laga hai...
to kahta hai..." Ma...tu samjhee nahee"

रतन चंद 'रत्नेश' said...

आज कि कड़वी सच्चाई......