Thursday, September 23, 2010

अपना-अपना दर्द



मिस्टर खन्ना अपनी पत्नी के साथ बैठे जनवरी की गुनगुनी धूप का आनंद ले रहे थे। छत पर पति-पत्नी अकेले थे, इसलिए मिसेज खन्ना ने अपनी टाँगों को धूप लगवाने के लिए साड़ी को घुटनों तक ऊपर उठा लिया।
मिस्टर खन्ना की निगाह पत्नी की गोरी-गोरी पिंडलियों पर पड़ी तो वह बोले, तुम्हारी पिंडलियों का मांस काफी नर्म हो गया है। कितनी सुंदर हुआ करती थीं ये!
अब तो घुटनों में भी दर्द रहने लगा है, कुछ इलाज करवाओ न!मिसेज खन्ना ने अपने घुटनों को हाथ से दबाते हुए कहा।
धूप में बैठकर तेल की मालिश किया करो, इससे तुम्हारी टाँगें और सुंदर हो जाएँगी। पति ने निगाह कुछ और ऊपर उठाते हुए कहा, तुम्हारे पेट की चमड़ी कितनी ढ़लक गई है!
अब तो पेट में गैस बनने लगी है। कई बार तो सीने में बहुत जलन होती है।पत्नी ने डकार लेते हुए कहा।
खाने-पीने में कुछ परहेज़ रखा करो और थोड़ी-बहुत कसरत किया करो। देखो न, तुम्हारा सीना कितना लटक गया है!
पति की निगाह ऊपर उठती हुई पत्नी के चेहरे पर पहुँची, तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गई हैं, आँखों के नीचे काले धब्बे पड़ गए हैं।
हाँ जी, अब तो मेरी नज़र भी बहुत कमज़ोर हो गई है, पर तुम्हें मेरी कोई फिक्र ही नहीं है! पत्नी ने शिकायत-भरे लहजे में कहा।
अजी फिक्र क्यों नहीं, मेरी जान! मैं जल्दी ही किसी बड़े अस्पताल में ले जाऊँगा और तुम्हारी प्लास्टिक सर्जरी करवाऊँगा। फिर देखना तुम कितनी सुंदर और जवान लगोगी।कहकर मिस्टर खन्ना ने पत्नी को बाँहों में भर लिया।
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