Tuesday, July 27, 2010

माँ

 










जिस्म को अपने नोच कर
तुझे पिलाया जिसने दूध
उस माँ को तूने
चाय के लिए भी तरसाया।
आँचल की छाँव में तुझ अबोध को रखा
रक्षा-कवच उस माँ का
तू कभी बन नहीं पाया।
छोटे से अपने पेट में भी
रखा तुझे जिसने
उस माँ को
अपनी कोठी में भी
रख नहीं पाया।
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